पानी और संसार | Water and the world
पानी और संसार |Paanee Aur Sansaar
पानी इस प्रकृति का अनमोल रतन में से एक है ।जब पृथ्वी के उत्पत्ति हुई ऋग्वेद के 17वें मंत्र में आया उसी समय अग्नि प्रमाण और जल परमाणु के मिलन से जल बना और खूब जोरदार वर्षा हुई थी।
तब जाकर पृथ्वी ठंडा हुआ और पृथ्वी में उथल-पुथल के कारण कहीं बड़े बड़े पहाड़ का निर्माण हुआ और कुछ भाग गहरा हो गया जो समुंद्र के रूप ले लिया जो समुंदर का रूप ले लिया जिस तरह से कहा गया कि पृथ्वी में 71 % बाग में पानी है और 29 % भाग में जमीन।
जिस तरह एक पुरानी के शरीर में भी 71% खून और 29% ही मांस है। प्राणी और पृथ्वी में समानता एक जैसा है। जिस तरह से प्राणी के शरीर में नसों द्वारा खून प्रवाहित होता है ठीक उसी तरह पृथ्वी पर भी नदियों मे जाल बिछा हुआ है और ना जाने कितने खनिज पदार्थ किस किस से गर्म में छिपा है जैसे मनुष्य के शरीर में भी बहुत सारे अव्य है।
नदी को गौर से देखिए उसकी सर्पिल चाल मुक्त कर देगी। बाणभट्ट ने कांडभरी भरी में इसके वक्रता कहा जाता है । जो जल जीव धारियों के लिए प्राण शक्ति का काम करता है। जल है तो कल है तभी तो खेतों में फसल लार आती है फल फूल से लदे अकाश छुते वृक्ष दिखाई देते हैं।
शास्त्र में भी बड़े पत्ते की बात कहते हैं पौधों कोशिश ने वृक्षों को जल देने जैसे तपस्या काल में पर्वती ने पौधों को पुत्रव्त वाला था। कालिदास के शकुंतला भी ऐसे जल दान करती थी। जल का दूसरा गुण है स्वच्छता और पारदर्शिता जिन्हें दिनकर कहते हैं।
सच्चाई की पहचान कि पानी साफ रहे पानी की तेज गति में विद्युत ऊर्जा छपी होती है। उसकी एक को ही बड़वानल कहते हैं। यह समुंद्र की आग होती है। चुल्लू भर पानी में डूब मरने की भी एक बड़ी कथा है।
कहा जाता है कि ऋषि अगस्त्य अपनी दिव्य शक्ति से एक चुल्लू में समुंद्र पी लिया था। रानी जब तक बहता है। शीशे की तरह साफ होता है। तभी तो
कबीर कहते हैं -
बहता पानी निर्मला वह रुकता भी है तो कीचड़ में कमल खिलता है।
पानी को सिलाई करना जितना जरूरत है उतना ही जैसे प्राणी के खून को आने वाली पीढ़ी के लिए हमें पानी साफ और स्वच्छ रखने कि हम सबकी जिम्मेदारी है ।
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