अहंकार पतन | Ahankaar Patan
पूर्व काल में कर्त विर्य अर्जुन के नाम से प्रसिद्ध एक राजा था, जिसकी 1000 भुजाएं थी। उसने केवल धनुष पूर्ण किए सहायता से समुंद्र प्रयत्न पृथ्वी को अपने अधिकार में कर लिया था। सुना जाता है 1 दिन राजा कर्त वीर्य समुद्र के किनारे विचार रहा था।
वहां उसने अपने बल के घमंड में आकाश सैकड़ों वाहनों की वर्षा से समुद्र को आच्छादित कर दिया। तब समुंदर ने प्रकट होकर उसके आगे मस्तक झुकाया और हाथ जोड़कर कहा बीर बर मुझ पर बाणों की वर्षा ना करो बोलो, तुम्हारी किस आज्ञा का पालन करूं ? तुम्हारे छोड़े हुए उन महान वनों से मेरे अंदर रहने वाले प्राणियों की हत्या हो रही है। उन्हें अभय दान करो। कर्त वीर्य
अर्जुन बोला:- समुंद्री यदि कहीं मेरे समान धन उधर भी मौजूद हो जो युद्ध में मेरा मुकाबला कर सके तो उसका पता बता दो फिर मैं तुम्हें छोड़ कर चला जाऊंगा।
समुद्र ने कहा:- राजन यदि तुमने महर्षि जमदग्निका का नाम सुना हो तो उन्हें के आश्रम पर चले जाओ। उनके पुत्र परशुराम जी तुम्हारा अच्छी तरह संस्कार कर सकते हैं। तदनंतर राजा कर्तव्य बड़े क्रोध में भरकर महर्षि जमदग्नि के आश्रम पर परशुराम जी के पास जा पहुंचा और अपने भाई बंधुओं के साथ उनके प्रतिकूल बर्ताव करने लगा । उसने अपने अपार धन से महात्मा परशुराम जी को उद्विग्न कर दिया। फिर तो शत्रु सेना को बस में करने वाला अमित तेजस्वी परशुराम जी का तेज प्रज्वलित हो उठा।
उन्होंने अपना फरसा उठाया और हजार बुझाओ वाले उस राजा को अनेकों सिखाओ से युक्त वृक्ष की भांति कर डाला। उसे मर कर जमीन पर पड़ा देख उसके सभी बंधु बांधव एकत्र हो गए तथा हाथों में तलवार और सत्या लेकर परशुराम जी पर चारों ओर से टूट पड़े। इधर परशुराम जी भी धनुष लेकर तुरंत रथ पर सवार हो गए और वाहनों की वर्षा करते हुए राजा की सेना का संहार करने लगे। उन्होंने 21 बार शत्रुओं का संहार किया और पृथ्वी को क्षत्रियों से निषेध कर दिया। इस प्रकार शहर सत्रह न्यू नके अहंकार के कारण और संपूर्ण क्षत्रिय जाति का विनाश हुआ।
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