मुख़्तार सिंह
एक बार मुख़्तार सिंह ने एक कबूतर का शिकार किया।
वह कबूतर जाकर एक खेत में गिरा,जब मुख़्तार सिंह उस खेत में कबूतर को उठाने पहुंचा, तभी एक किसान वहां आया और मुख़्तार सिंह से पूछने लगा कि वह उसकी प्रोपर्टी में क्या कर रहा है ?मुख़्तार सिंह ने कबूतर को दिखाते हुए कहा– “मैंने इस कबूतर को मारा है और ये मरकर यहाँ गिर गया इसलिए मैं इसे लेने आया हूँ।”
किसान– “ये कबूतर मेरा है क्योंकि ये मेरे खेत में पड़ा है।”
मुख़्तार सिंह – “क्या तुम जानते हो तुम किससे बात कर रहे हो?”
किसान– “नहीं मैं नहीं जानता और मुझे इससे भी कुछ लेना-देना नहीं है कि तुम कौन हो।”
मुख़्तार सिंह– “मैं वकील हूँ , अगर तुमने मुझे इस कबूतर को ले जाने से रोका तो मैं तुम पर ऐसा मुकदमा चलाऊंगा कि तुम्हें तुम्हारी जमीन जायदाद से बेदखल कर दूंगा और रास्ते का भिखारी बना दूंगा।”
किसान ने कहा– “हम किसी से नहीं डरते … हमारे गाँव में तो बस एक ही कानून चलता है… लात मारने वाला।”
मुख़्तार सिंह – “ये कौन सा क़ानून है… मैंने तो कभी इसके बारे में नहीं सुना।”
किसान ने कहा- “मैं तुम्हें तीन लातें मारता हूँ , अगर तुम वापस उठकर तीन लातें मुझे मार पाओगे तो तुम इस कबूतर को ले जा सकते हो।”
मुख़्तार सिंह ने सोचा ये ठीक है.. ये मरियल सा आदमी है, इसकी लातों से मुझे क्या फर्क पड़ेगा। ये सोचकर उसने कहा – “ठीक है मारो।”
किसान ने बड़ी बेरहमी से मुख़्तार सिंह को पहली लात टांगों के बीच में मारी जिससे मुख़्तार सिंह मुहं के बल झुक गया।
किसान ने दूसरी लात मुख़्तार सिंह के मुहं पर मारी जिसके पड़ते ही वह जमीन पर गिर गया।
तीसरी लात किसान ने मुख़्तार सिंह की पसलियों पर मारी...
बड़ी देर बाद कराहता हुआ मुख़्तार सिंह उठा और जब लात मारने के लायक हुआ तो किसान से बोला – “अब मेरी बारी है।”
किसान– “चलो छोड़ो यार ! ये कबूतर तुम ही रखो।”
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