भावना | जैसी रही भावना जैसी प्रभु मूरत दिखाएं | STORY IN HINDI
भावना क्या है
रामायण में चौपाई है। जैसी रही भावना जैसी प्रभु मूरत दिखाएं तीन जैसी किसी जमाने में एक राजा हुआ करता था।
भावना | FEELING
राजा के दरबार में एक लकड़हारे को पकड़ कर लाया गया। राजा ने लताड़ा को लकड़ी काटने के जुर्म में उसे कठोर सजा दे दिया। फिर कुछ दिन बाद उसे छोड़ दिया गया।
लखाराम फिर से लकड़ी काटकर अपना जीवन यापन करने लगा। 1 दिन राजा ने बीरबल से पूछा कि बीरबल हमारे राज्य में सब हमारे गुण गायन करते होंगे क्योंकि मैं सब को काफी दान किया करता हूं।
बीरबल ने कहा नहीं आप की भावना जिसके ऊपर जैसी होगी ठीक उसी प्रकार प्रोजेक्ट की भावना होगी। राजा ने कहा ऐसा नहीं हो सकता। तो बीरबल ने कहा ठीक है हमारे साथ आप अपने राज्य में भ्रमण पर चलिए आप को सब पता चल जाएगा।
राजा और बीरबल दोनों चल पड़े। कुछ दूर चलने के बाद रास्ते में गमन साफ दिखाई दिया राजा ने बीरबल को कहा यह बहुत विषैला सांप है उसे मार डालो। जब बीरबल लाठी से उसे मरना चाहा तब से आपने भी आक्रमण के लिए तैयार हो गया और राजा के ऊपर कूदकर काटना चाहा पर राशि कपड़े बहुत मोटे थे इस कारण राजा बच गया।
फिर कुछ देर बाद फिर रास्ते में एक और गईन सांप बहुत ज्यादा विषैला था। उसे देखकर राजा ने कहा अब बीरबल भाग गया तो और भी बड़ा और जहरीला है। राजा और बीरबल जैसे ही रास्ते से हट गए वह सांप अपना भी रास्ता बदल दिया।
फिर कुछ आगे चलने पर देखा कि एक बुढ़िया भीख मांग कर अपना गठरी अपने सिर पर लेकर धीरे धीरे चल रही थी। तभी बीरबल ने पूछा महाराज आप इस गुड़िया के बारे में क्या सोचते हैं। राजा ने कहा यह काफी गरीब और लाचार दिखाई देती है इसके लिए राज्य को से कुछ धन देना चाहिए। बीरबल ने राजा सेव का महाराज आप थोड़ा चुप जाइए ।
मैं इस बढ़िया से पूछता हूं आपके प्रति इसकी क्या भावना है। जब बीरबल गुड़िया के पास पहुंचा और बोला बढ़िया माता एक बात सुनी है राजा साहब तो आज मर गए। बुढ़िया ने अपनी गठरी पटक दिया और जोर जोर से रोने लगी और कहने लगी राजा बहुत दयालु थे वह मुझे हमेशा भिख दिया करते थे।
उन्हें मेरी उम्र लग जाती तो अच्छा होता है इस तरह वह रोते हुए चली गई। फिर कुछ दूर और आगे चला तो देखा वही लकड़ी लकड़ी का भारी गैस लेकर समझता हुआ आ रहा है। बीरबल ने राजा से पूछा महाराज आप इसके बारे में क्या सोचते हैं। राजा ने कहा यह लाकड़ा बहुत ही बदमाश है मैं इसे कई बार डंडी दे चुका हूं फिर भी यह लकड़ी काटना नहीं छोड़ता।
बीरबल ने कहा महाराज आप थोड़ा छुप जाइए मैं उससे पूछता हूं कि उसका विचार आपके प्रति कैसा है। बीरबल लकड़हारे के पास पहुंचा और बोला अरे सुना है अपने राजा साहब आज ही मर गए। लकड़हारे ने कहा अच्छा हुआ वह एक निर्दई राजा था मुझे हमेशा कठोर दंड दिया करता था।
इन सभी की बात राजा को समझ में आ गई। तब राजा ने बीरबल से कहा यह सब ठीक ही कह रहे हैं जैसी मेरी भावना जिसके प्रति है ठीक उसकी भावना भी मेरे प्रति है।
अगर मैं किसी से लड़ने जाऊंगा तो क्या शत्रु पक्ष हमें फूल बसाएंगे। अपनी भावना हमें ठीक करनी पड़ेगी। मैं दूसरे से कुछ अपेक्षा करता हूं तो वह वह हमसे कुछ अपेक्षा रखता है।
दूसरे का सत्कार करेंगे तो दूसरा व्यक्ति दुश्मन भी होगा तो वह भी सत्कार करने के लिए मजबूर हो जाएगा। अपने जीवन में आजमा कर देख ले।।।
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