भगवान् कि महिमा | Bhagavaan Kee Mahima
भगवान् कि महिमा | Glory to God
भगवान् (God) कि महिमा को न कोई जान सका न ही कोई समझ सका है पर देख सब रहा है | चलिए भगवान् (God) कि महिमा के कुछ उद्धारण देता हूँ कैसे भगवान् (God) अपना महिमा से इस दुनिया को चला रहा है | सबसे पहले किसी मानव को इस संसार में जन्म होता तो वह बच्चा बन कर किसी के गोद में आता है |
देखिये एक ही समय में एक बच्चा किसी राजा या किसी अमीर परिवार में जन्म लेता है और उसी समय किसी एक बच्चा गरीब निर्धन के घर में जन्म लेता है | जब बच्चा किसी अमीर के घर में जन्म लेता है , उसी समय से उसे सब सुख सुबिधा उपलव्ध होता है और उसी सुख सुबिधा के सहारे वह आगे जा कर उस में से कुछ निर्धन भी हो जाते है और अन्तोगत्वा वह भी गरीब के श्रेणी में आ जाता है | उस का मुख्य कारण आमदनी घटना और खर्च राजा जैसा |
अब गरीब के घर जन्मे बच्चा कि बात करते है | गरीब बच्चा तरह तरह के आवभ में ज़िंदा रहेने के लिए गरीबी से झूमता हुआ आगे नहीं बढ़ नहीं पाता | हाँ उसी बच्चे में से कुछ ऐसा बच्चा भी जैसे कीचड़ में कमल खिलता है ठीक उसी तरह वह आगे निकलता है और बड़े बड़े औधे पर बैठ जाते है | यह सब भगवान् (God) कि ही महिमा नहीं तो क्या है |
हम ने समाज में ऐसा बहुत कुछ होते देखता हूँ | जिनके पास आपर सम्पति है पर उनके यहाँ खाने बाला कोई नहीं औलाद के लिए भी तरपता है | उनके पास खाने के लिए कमी नहीं है पर वह चाहकर भी अपना मन मुताबिक नहीं खा सकते | क्योंकि वे इतना बीमारी से झूल रहे होते है इसलिए उन्हें गरीब के जैसा साधारण खाना खाना पड़ता है | इसी तरह गरीब के घर में इतना बच्चा जन्म लेता है , वे बच्चे बड़े खाने के लिए तरपते है और उन लोगो को भूखा भी रहना भी पर जाता है | यह भी भगवान् कि महिमा नहीं तो क्या है ? हमने देखा है हमारे समाज में के लोग बड़े बड़े अवोदा पर जा का विराज्य होता तथा सरकारी और गैरसरकारी पद पर रह कर देश कि सेवा करते है और अंत में सेवा निर्वित के बाद बड़े बड़े बंगले में रहते है |
उनके पास पैसे का आभाव तो नहीं रहता है , क्योकि उनके बच्चे भी देश – विदेश में जाकर अपना जीवन यापन करने लगता है यापन करने लगता है ,और उन्के माता- पिता बुडा हो कर एकेले बड़े बड़े बंगला में नौकर चाकर के सहारे रहने लगता है | वे समाज से स्वंग ही अलग हो जाते है क्योंकी वे अपना पुराना रुतबा के कारण सोचते है | मेरे लायक बात – चीत , विचार विमर्श करने के लिए हमारे पास वैसे कोई व्यक्ति ही नहीं है इसी सोच के कारण वह अमीर होकर भी अकेलापण के जिन्दगी जीते है |
दुसरी तरफ गरीब आदमी अपना जिस हैसियत से रहेते थे , उसी में वे कमाते है और अपना ढेर सारे बच्चो के साथ दुःख – सुख में साथ – साथ रहेते है |
उनके पास आकेलापन कभी नहीं खलता भले ही वह भूखा ही रहे | वे दुःख – सुख में मिल – जुल कर सामना करते है | उनके पास बेटा , पोता , परपोता तक रहता है , पर अमीरों के ये नसीब में कहाँ इसलिए अमिर होना भी अभिशाप जिस तरह गरीब होना | इसलिए
कबी रहीम सही ही कहता था |
साईं इतना दीजिये जा मै कुटुंब समाये
मैं भी भूका न रहू साधू भी भूका न जाए
अब देखीये अंत में वे दोनों एक ही रास्ते पर खड़े मिलते है सिर्फ अमिर – गरीब कि खाई रह जाती है | और दुनिया से विदा हो चलते है | यही भगवन कि महिमा कहलाता है |
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