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साश्वत ही सच्चा सुख

अभी बाहर से लोग आप दक्ष के समय में कुछ लोग सत्य से हार कर असत्य की तरफ जा रहे हैं। कहावत है नेकी कर और दरिया में डाल यह बिल्कुल सत्य है
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साश्वत क्या है ?


साश्वत का मतलब होता है -अनंत .निरंतर ,न रुकना , कभी स्थयी, सतत ।


अभी बाहर से लोग आप दक्ष के समय में कुछ लोग सत्य से हार कर असत्य की तरफ जा रहे हैं। कहावत है नेकी कर और दरिया में डाल यह बिल्कुल सत्य है। इंसान कितने दिनो तक जिंदा रहेगा ये कहा नहीं जा सकता है पर इंसानियत सदा जिंदा रहता है। नेक कर्म भले ही दरिया में रहता हो पर उसे करने वाले के जाने के बाद भी रहता तो है ही। इस विषय पर अधिकतर विचार का एक मत है कि आदमी को ईसान होना ही काफी नहीं है। उल्टे यह एक कठिन कर्म है। नहीं तो कैसे संभव है कि एक इंसान महामारी से जूझ है और कुछ दुष्ट प्रवृत्ति के लोग उसकी आपदा से पैसा बनाएं। इतना ही नहीं अनिवार्य दवाइयों और ऑक्सीजन की जमाखोरी करें दूसरे को जरूरत पर मनमानी पैसे वसूले या उनके जान जाने का आनंद ले। इस आपदा में आदमी ही आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है। व्यक्ति को छोड़िए तो यही सोच रास् में नजर आता है। वरना विश्व युद्ध क्यों होता राष्ट्रीय संपत्ति और सुरक्षा साधनों का एक दूसरे के व्यापक विनाश में प्रयोग का प्रयोग का अर्थ ही क्या है?
साश्वत ही सच्चा सुख
क्या दूसरे किसी देश के नागरिक की प्रशंसा के मानक में वृद्धि होती है। या उनकी गरीबी घटती है। अथवा हुआ राष्ट्रीय गौरव से पेट भरता है। इसे त्रासदी कहेंगे कि लाखों के जान मिट्टी में मिला कर चंद मूर्खता तक स्वयं को गौरव मंडित महसूस करते हैं। जिगर है कि इतिहास उन पर रुकता है हालांकि उनके ऊपर ओक पढ़ने या देखने को उनका जीवित रहना कठिन है। अपनी उपलब्धि के समान उनका जीवन भी नश्वर है। इतना राष्ट्रीय जमन पति जितना जितना विनाशक हथियार के ऊपर खर्च होते हैं उतना पैसा हर देश अपने नागरिक के ऊपर खर्च करता तो यह दुनिया किसी स्वर्ग से कम नहीं होती और लोग कहते कि स्वर्ग है तो इन्हीं है इसी कड़ी में मैं एक कहानी सुनाता हूं।

चुनाव के सम्राट ने उन दिनों काफी खुशहाल समझते हैं थे। सब लोग दूर-दूर से उनका महल धन दौलत ऐसे अरब का सामान देखकर आश्चर्यचकित होते थे। सभी लोग उनका गौरव सुख जमीनी देखकर कहते थे सम्राट बहुत ही सुखी हैं। उसी समय चुनाव के एक महान विधान सोलन बहुत ही प्रसिद्ध और विख्यात था। सम्राट ने उस विद्वान को बुलाया सोलन एक सुकरात जैसा मनीषी था। सम्राट ने सोलन को लिए बुलाया था क्योंकि सोलंकी बड़ी खवाथी थी। सोलन के एक एक शब्द का मूल्य होता था। राज्य को उम्मीद खाकी सोलन जब उनका महल देखेगा तो जरूर कहेगा कि आप जैसा सुखी कोई नहीं है।

सोलन आया उसे महल घूम कर दिखाया गया। बहुत दौलत थी उसके पास। महल में बहुत सुंदर ही था। घूमते घूमते कोरल उदास हो गया और चुप हो गया और गंभीर होता गया। जैसे सम्राट मरने को पढ़ा हो और उसे देखने हो। राकेश सम्राट ने अपने दरबार में बुलाया और पूछा क्या बात है ? क्या हमने मुझ जैसा सुखी कोई और देखा है। मुझे लगता है कि मैं परम सुखी हूं।

सोलन में कहा मैं चुप ही रहो यही अच्छा है। क्योंकि मैं सत्य को जानता और पहचानता हूं मैं असत्य नहीं बोल सकता जो चीज शाश्वत नहीं है उसे मैं सुख नहीं मानता यह सब दुख है। जिसे आप सुख समझ रहे हो तुम मूर्ख हो। यह सुनकर सम्राट को गुस्सा आ गया। उसने क्रोध में आकर बोला तुम चुप ही रहते तो अच्छा होता। सोलन को महल के अंदर एक खंभे में बांधकर जो मैंने कहा अभी भी तुम माफी मांग लो और कह दो सम्राट तुम बहुत सुखी हो। सोलन ने कहा मरना तो है ही कैसे मर रहा हूं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं झूठ बोलूंगा तभी मरूंगा क्योंकि मैं सत्य को जानता हूं। मैं झूठ नहीं कहूंगा। सोलन को गोली मार दी गई। कुछ दिनों बाद सम्राट पराजित हुआ। विजेता ने सम्राट को उसी खंभे में बांधकर लटका दिया। गोली मारने का आदेश हुआ। 10 सम्राट को अचानक सोलंकी याद आई उनके शब्द सुनाई पड़ी जो शाश्वत नहीं वह सुख नहीं जो झनमगूर है उसका कोई मूल्य नहीं।
 सम्राट ने सपना बंद कर लिया वह अपने को भूल गया। उसने कहा सोलन मुझे क्षमा कर दो तुम ही सही थे। वह जो हमें सुख मालूम होता है। वह सुख नहीं है। इसके कारण मैं कितनों को आया था और कितनों को दुखी किया था। सच्चा शाश्वत में है
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