सफलता कि पूंजी क्या है ? | What is the capital of success?
सफलता कि पूंजी क्या है ?
एक दिन गुरु जी के पास एक शिष्य आया और पूछा सफलता कि पूंजी क्या है ? गुरुजी ने कहा चलो मेरे साथ उसके साथ लेकर एक नदी के किनारे गया वहा पर एक नाबिक नाब लेकर बड़ी मुस्किल से नदी कि धरा को काटते हुए किनारे पहुचा !
उससे गुरुजी ने पूछा तुम्हारे सफलता कर मार्ग क्या है? तो नबिक ने कहा पबित्र सोच और कड़ी मेहनत सफलता का सच्ची पूंजी है |
फिर गुरु जी ने एक बढाई के पास गया शिष्य को बढाई को किल ठोकते हुए दिखाया गुरूजी ने बढाई से पूछा तुम्हारी सफलता का राज क्या है , बढाई ने उत्तर दिया रह-रह कर हथोरे से किल को थोकद मारना उस किल को आपने सही जगह पकड़ लेता है यही मेरा सफलता कि पूंजी है |
फिर गुरुजी ने शिष्य को लेकर एक रास्ते पर जाकर खड़ा हो गया गुरुजी ने एक पथिक से पूछा तुम्हारी सफलता का राज क्या है , पथिक ने जाबाब दिया ना थकना और ना रुकना यही मेरी सफलता का पूंजी है |
उपरोक्त बातो को देखते हुई तीनो सभाघी का जाबाब का पहला अक्षर लेने शब्द बनता है पर्थ उसको सुध करने शब्द बनता है पार्थ ,पार्थ को तो सब जानते है महाभारत में कृष्ण ने अर्जुन को पार्थ कह कर संबोधित करते थे पार्थ का मतलब होता है अर्जुन , अर्जुन ही महाभारत का सफलता का पूंजी था | तब सिस्य ने गुरुजी के पाँव पकड़ लिए सफलता का मार्ग जन लिया |
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