जीवन का सफर| Journey of life
जीवन का सफर| Journey of life | Story in Hindi
हर प्राणी के जीवन में सफल चलता ही रहता है चाहे वह होता रहे रोता रहे या कुछ भी करें उसका जीवन का एक-एक पल गुजरता रहता है इसी सफर में प्राणी जन्म से मृत्यु तक सफर करता ही रहता है पर मनुष्य एक बुद्धिजीवी प्राणी है वह इस सफर को अलग-अलग ढंग से जीवन का सफर करता है। मैं एक भौतिकी सफर का जिक्र कर रहा हूं। एक श्रमिक अपने रोजी रोटी के लिए शहर जाता है।
मेहनत मजदूरी का पैसा प्राप्त कर अपने परिवार को भेजता है जिससे उनका परिवार का भरण पोषण होता है इसी तरह एक श्रमिक अपना घर वापस आ रहा था तो उनके बच्चे ने फोन से बताया कि यहां काफी गर्मी होती है एक पंखा और एक बल्ब लेकर आना।
श्रमिक बहुत निराश हुआ कि कितने पैसे तो है ही नहीं कि पंखा और बल खरीदें वह अपने घर जाने के लिए रेल गाड़ी में बैठ गया तभी उससे रेलगाड़ी में एक स्लोगन लिखा दिखता है। रेलवे आपकी संपत्ति है इसे क्षति ना पहुंचाएं।
यह देखकर श्रमिक ने ऊपर वाले तेरे पर बैठकर पहले बल खोला फिर पंखा खोला और जब रेल गाड़ी रुकी तब वह हाथ में लेकर गाड़ी से उतर गया और बाहर जाने के लिए प्लेटफार्म पर चलने लगा तभी पुलिस ने उसे पकड़ लिया। उसे जेल भेज दिया कुछ दिन बाद उससे जज साहब के पास लेकर गया।
जज साहब ने उस श्रमिक को पूछा तुम रेलगाड़ी का सामान चोरी क्यों किए हो इसलिए तुम्हें सजा हो सकती है। श्रमिक ने कहा मैंने तो कोई चोरी नहीं की है।
मेरे बच्चों ने कहा था एक पंखा और एक बल लेकर आना तो मैं मैं लेकर जा रहा था क्योंकि गाड़ी के अंदर लिखा था रेलवे आप की संपत्ति है इसे क्षति न पहुंचाएं तो मैं , अपनी संपत्ति से कुछ ले लिया तो चोरी कैसा ? फिर जज साहब ने कहा कि कोई अपनी संपत्ति को नुकसान पहुंचाता है क्या? श्रमिक ने कहा मैंने कौन सा नुकसान पहुंचाया है।
अपनी संपत्ति अपने जरूरत के हिसाब से अपने घर में लगाते हैं। इसमें नुकसान कैसा। यह सुनकर जज साहब ने कहा श्रमिक का तर्क ठीक है जैसा स्लोगन लिखा है और श्रमिक को रिहा कर दिया गया।
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