भक्त और भगवान की कथा
मनुष्य का आत्मा सभी जीवो की आत्मा से पवित्र माना जाता है | क्योंकि बुद्धि और विवेक का खजाना सिर्फ मनुष्य को मिला है | मनुष्य जब जन्म लेता उस समय से माता पिता की निगरानी में रहता है | बच्चा भी आपने माता पिता के द्वारा किये कर्म कांड देखते देखते बड़ा होता है बच्चा जब तक समझदार हो जाता है तभी उसे आस्ता के साथ जीना सिख जाता है |
सभी मनुष्य आस्तिक होता है | सभी किसी रूप में आपने भगवन को मानता है | जब मनुष्य कोई संकट में पड़ता है | तब भगवन को याद करता है |
गीता में श्री कृष्ण कहते है - इस दुनिया में जो कुछ भी घटित होता है वह सब उनके ही श्रेय है | भगवन कहते की मैं ही सृजन करता हूँ , मैं ही देख रेख करता हूँ और मैं ही संघार करता हूँ |
मनुष्य किसी भी रूप में पूजा करता है वह सब मुझे ही मिलता है | भगवन अपने भक्त को सुखी देखकर खुश होते है और दुखी देखकर दुखी होते है | फिर भी भगवन भी आपमें भगतो के लिए कुछ नहीं कर सकता क्योंकि बिधि द्वारा लिखा को भगवान नहीं बदल सकते क्योंकि वह प्रकृति के नियम को नहीं बदल सकते। पर भक्तों पर आने वाले संकट को वे टाल तो नहीं सकते पर अपने भक्तों को संकट से बचाने के लिए प्रयत्न करते हैं। भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि सुदामा से कहते हैं यह अंग वस्त्र मुकुट बनो ताकि मैं देख सकूं कि तुम कैसे दिखते हो तभी मैं भी यह अंग वस्त्र धारण करूंगा क्योंकि अपना मुकुट मैं खुद नहीं देख सकता।
सुदामा शर्माते हुए अंग वस्त्र आभूषण और मुकुट पहनकर भगवान के सामने आते हैं। सब भगवान उसे निहार निहार कर देखते हैं और खुश होते हैं। भगवान करते हैं जब भक्त मुझे में भक्ति मेलिन हो जाता है तो मैं उसी रूप में उसे दर्शन देता हूं जिस रूप में वह मेरा भक्त करता है। को साधु बनकर भक्ति करता है उसे मैं साधु के रूप में ही दर्शन देता हूं जब कोई रहता है या अच्छा वेशभूषा मैं मेरा भक्ति करता है मैं उसी के रूप में दर्शन देता हूं पर मेरा वक्त मुझे पहचान नहीं पाता और मैं अपना संपूर्ण रूप दिखाई नहीं सकता क्योंकि अभी प्रकृति का नियम के विरोध है मैं अपने भक्तों को कर्म करो पूरा कराने के लिए प्रतिबंध हूं।
अगर मैं बीच रहा मैं उनका कष्ट हरण कर दूंगा तो मैं उसे बाकी के कष्ट के लिए दोबारा जन्म लेना पड़ेगा। भगवान कृष्ण कहते हैं देखो सुदामा एक वृद्ध ब्राह्मण है वेब मेरा प्रिय भक्त भी है उनके बच्चे बीवी सभी पूर्व जन्म के पाप के कारण इस जीवन में दुख भोग रहे हैं यदि मैं उनका कष्ट निवारण कर दूंगा तो फिर बाकी बचा हुआ कष्ट भोगने के लिए जन्म लेना पड़ेगा। इसलिए भगवान उन सुदामा परिवार को पल-पल देखते हैं और अपने भक्तों के साथ साथ वह भी दुखी होते हैं और दुख भोगने में साथ निभाते हैं पर हां जब कोई बिना विधि द्वारा लिखा कर्म कर उनका भक्तों को नुकसान करना चाहता है उसे वह संघार कर देते हैं।
इसलिए मनुष्य को बुद्धि दे गया है ताकि वह भगवान के रूप को पहचाने और मनुष्य निष्पाप बने और अपने जीवन को खुद से उद्धार करें।मनुष्य भगवान की पूजा अर्चना धर्म-कर्म इसलिए करता है कि भगवान इस जन्म में उनका कर्म के दुख सुख में सौभाग्य बने और उनके कर्मों के फल निकाह करने में मदद करें भगवान तो सिर्फ भाग के मुख है सिर्फ श्रद्धा और भक्ति के प्यास है सिर्फ भक्ति करने वालों की कमी है।
इसका मतलब यह यह नहीं है कि जो मंदिर में जा कर पूजा करें ढोंग करें दिखावा करें जो पूजा नहीं करता मंदिर नहीं जाता उसे भी भगवान उधार करते हैं।
क्योंकि भगवान भेदभाव नहीं करते पूजा याचना लोग सिर्फ अपने लिए ही करते हैं उनका पुणे प्रताप तो आने वाली पीढ़ी की नींव होती है। भगवान घट घट कन कन में विराजमान है सिर्फ मनुष्य को अनुभव करने की जरूरत है। आज तक भगवान ना तो किसी भक्तों को दर्शन दिए पर समय समय पर अपना अस्तित्व का अनुभव जरूर कराया ||
Post A Comment:
0 comments: