लोकतंत्र का इतिहास | लोकतंत्र की शताब्दी
आज हम 21वी सदी में है लोकतंत्र की शताब्दी मना रहे हैं। क्या आप जानते हैं लोकतंत्र में कुछ अच्छा ही है कुछ बुराइयां दी है हम इतिहास के पन्ने पलटते हैं इन बातों का ज्ञान होता है लोकतंत्र की स्थापना के लिए अनेक देश ने जन आंदोलन किया है। लोकतंत्र का पैर जमाया और राजशाही के सारे अधिकार उनके द्वारा छीन लिए गए।
लोकतंत्र को पाने के लिए और लोकतंत्र की बहाली के लिए सभी देश के लोगों ने संघर्ष किया साथ ही जबरदस्त जन आंदोलन चलाया गया। यदि हम बात करें अपने पड़ोसी राज्य नेपाल की यहां राजशाही थी
यहां के जनता ने सात राजनीतिक दलों का गठबंधन किया और जनता के साथ मिलकर जबरदस्त आंदोलन चलाया गया। आंदोलन को अंततः सफलता मिली गई।
नेपाल की जनता लोकतंत्र के लिए बेचैन थी। जनता मे भरपूर आक्रोश था
जनता के आक्रोश और जनसैलाब के आगे राजशाही को झुकना पड़ा । 24 अप्रैल 2006 का दिन नेपाल की जनता को याद रहेगा क्योंकि जिस दिन नेपाल के नरेश ज्ञानेंद्र ने सात राजनीतिक दलों के गठबंधन को सांसद को बहाल कर सत्ता सौंपने की घोषणा की थी। इस दिन को नेपाल के लोकतंत्र का पुनर्जन्म भी कहा जाता है।
ऐसे कहा जाए तो बहुत से ऐसे देश हैं जहां लोकतंत्र के लिए जनता को संघर्ष करना पड़ा है
ऐसे ही दक्षिण अफ्रीका का एक देश है चिल्ली जहां लोकतंत्र समाप्त कर सैनिक शासन स्थापित हो गया था। वहां के राष्ट्रपति अंधे की हत्या करके शासन की बागडोर जनरल अगस्तो पिनोशे ने हासिल की। वह 17 वर्षों तक दिल्ली का राष्ट्रपति बना रहा।
जब चिल्ली की जनता ने लोकतंत्र स्थापित करने के लिए आंदोलन किया उस आंदोलन को शांत करने के लिए वहां कि राष्ट्रपति पिनोशे ने प्रत्याशा में जनमत संग्रह कराने का निर्णय लिया उसे लगता था की चिल्ली की जनता शासन को जारी रखने के पक्ष में ही मतदान करेगी परंतु उसका भ्रम टूट गया। वहां के लोगों को तो जैसे एक मौका मिल गया था इसलिए अपार बहुमत से जनता ने पिनोशे की सत्ता को नकार दिया।पिनोशे की तानाशाही के दौरान दमन का शिकार रहे समाजवादी विचारधारा की मिशेल बैशेले चिल्ली की नई राष्ट्रपति निर्वाचित हुई।
कितनी भी मुश्किल हो परन्तु जीत लोकतंत्र कि ही हुई है |
भारत को लोकतंत्र अपनाने के लिए बहुत संघर्ष किया | बहुत से आन्दोलन हुए | जैसा कि हम जानते है कि आज़ादी के बाद भी
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