व्याकुलता कि झलक | Vyaakulata Ki Jhalak
व्याकुलता कि झलक
एकबार हमने ट्रेन सफ़र पर जा रहे थे | पहले रेलगाड़ी कोयला और पानी पे वे चला करती थी | जब मै अपने परिवार के सदाशय के साथ कोलकत्ता के सफ़र पर गया उस समय थोड़ी-थोड़ी दुरी पर रेलगाड़ी बदलनी पड़ती थी |
मोकामा में पूल नहीं था वहा पानी के जहाज चला करता था | जब हम लोग मुज्ज़फरपुर रेलवे स्टेशन पर गाड़ी के इन्तेजार कर रहे थे | गाड़ी समय से लेट था | कुछ देरी के बाद गाडी स्टेशन पर आई | लोग किसी तरह गाढ़ी में चढ़ने के लिए बेताब थे जैसे तैसे हम सभी परिवार के साथ गाडी में दाखिल तो हो गए पर सीर पकड़ना काफी मुस्किल फिर सीट भी मिल गया |
जब चलना सुरु हुआ तो मै खिड़की से झांक कर देखा काफी लोग स्टेशन पर गाड़ी में नहीं चढ़ नहीं पाए और सिटी बजाते हुए खाना हो गया | कुछ दूर आगे जाने के बाद गाडी में कुछ लोगो से बात चित पूछ – ताछ शुरू हो गया एक आदमी बगल के सीट पर बैठा था वह बोला मेरा जहाज का टिकेट नहीं मिला इस कारण इस गाडी के सफ़र भर हु |
कुछ देर बाद गाडी एक जंगली इलाके में जाकर रुक गयी हम लोग सोचे कि क्रासिंग होगा कोई गाडी आ रही होगी इस कारण गाडी को सिंग्नले नहीं मिल रहा होगा | आब धीरे धीरे सूरज भी डूबने लगा और रात के अँधेरे भी छाने लगे | गाडी में बल्ब भी नहीं था सब अँधेरे में बैठे थे | कुछ देर बाद देखा कि गाडी के गार्ड और कुछ सिपाही इंजन कि तरफ से हाथ में टोर्च लिए आ रहे थे | जब वे पास आये तब उनसे कुछ आदमी ने पूछा क्या हुआ ? गाडी क्यू नहीं चल रही है ? गाडी क्यू नहीं चल रही है |
गार्ड ने कहा आगे लाइन टूट गया और मरमत करने बाले अँधेरे कि वजह से काम नहीं कर पा रहे है | अब हम लोगो को और बेचैनी हुई क्या करे कही स्टेशन पर गाडी रूकती तो कुछ खाना पानी कि व्यवस्ता हो जाता , गाडी में तो पानी भी नहीं है , ऊपर से अँधेरे में मछर भी काट रहे है | फिर मैंने सोचा , अच्छा हुआ जिन लोगो कि गाडी छुट गई थी वे लोग ही अच्छे से होंगे कम से कम स्टेशन खाने और पीने का सामान तो होगा , स्टेशन पर रौशनी और सोने के लिए फर्श तो है | हाय हम लोगो के नशीब ही ख़राब था , जो इस गाडी में बैठ गए |
रात भर हम सुब वाय्कुल मन से जागते रहे फिर सुबह गाडी वहा पहुछी तब गाड़ी में पानी भरा गया , और हम लोग भी स्टेशन पर उतर कर मुह हाथ धोये | तब कुछ व्याकुल मन शांत हुआ |
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